प्रेरक व्यक्तित्व-1
19वीं सदी की शुरुआत में लन्दन का एक नौजवान लेखक बनना चाहता था. परंतु उसे लगता था कि इस दुनिया की हर चीज उसके खिलाफ थी. गरीबी के कारण वह सिर्फ चार साल तक ही स्कूल जा पाया था. उसके पिता क़र्ज़ ना चुकाने के कारण जेल में थे और वह युवक अक्सर भूखा रहा करता था. आख़िरकार, उसे चूहों से भरे एक गोदाम में बोतलों पर लेवल लगाने का काम मिल गया. उसके अलावा वहां दो और बच्चे भी थे जो झुग्गियों के माहौल से आये थे- वे सब रात को उसी दड़बे में सोया करते थे.
उसे लिखना पसंद तो था पर उसे अपनी योग्यता पर इतना कम विश्वास था कि उसने अपनी पहली पांडुलिपि (manuscript) रात के अँधेरे में डाक के डिब्बे में डाली ताकि कोई उसकी हँसी न उड़ाए। कहानी के बाद कहानी रिजेक्ट होती चली गई. आख़िरकार वह महान दिन आया जब उसकी एक कहानी स्वीकार कर ली गयी. यह सच है कि उसे इसके बदले में एक पैसा नहीं मिला, परंतु एक संपादक ने उसकी तारीफ़ की. एक संपादक ने उसे सम्मान दिया. वह इतना रोमांचित था कि वह उस दिन लन्दन की सड़कों पर पागलों की तरह घूमता रहा और उसके गालों पर खुशी के आँसू बह रह थे.
अपनी एक कहानी के छपने से मिली इस प्रशंसा, इस सम्मान ने उसकी जिंदगी बदल दी.
आप सभी ने शायद उस महान युवक का नाम सुना होगा. उसका नाम था ----चार्ल्स डिकेंस [1812-1870]
जल्द ही मुलाकात होगी ऐसे ही एक और महान व्यक्तित्व से..
आपका
अमित हंस